Thursday, July 1, 2010

मुझे बढ़ना ही होगा ...


डगमग डगमग राहों पे ,
मैं चला ही जा रहा हूँ ...
कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पे
मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ ...

मैं चला था कल अकेला ,
कोई आया कोई चला गया ,
अंतर्द्वंद से कोई भरा रहा ,पर
मैं बढ़ता ही चला गया ...

पीछे मुड के देखा जब ,अब
कोई साथी ना दिख पाया
देखा साथ में कौन है ....
बस अपने को ही मैंने पाया ,
आगे बढ़ने की सोची तो
मंजिल एक नई चुनी
सोचा चलना चाहिए अब
सोचा बढ़ना चाहिए अब

हाँ ,
डगमग डगमग राहों पे ,
मुझे बढ़ना ही होगा ...
कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पे
मुझे बढ़ना ही होगा ...


2 comments:

  1. जोगी
    तने सीसा दूं
    यूं तो तने घनी सुग्री लिक्खो है
    नू ही लिखा कर
    तने साबास घनी

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  2. Sach...jeevan me chalte rahne ke alawa koyi paryaay nahi hota!Ek geet yaad aya.."Chal chal re naujawan...door tera gaanv ,aur thake paanv,phirbhi tu hardam aage badha qadam,rukna tera kaam nahi,chalna teri shaan"...

    ReplyDelete

 
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