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Tuesday, October 20, 2009
मैं ......
मैं चला तो हूँ आंखों में
अनगिनत सपने ले के ,
देखता हूँ कितने होंगे पूरे
और कितने रहेंगे अधूरे ।
बहुत साथी थे साथ में
एक एक कर छोड़ के जाते भी रहे ,
कुछ नए मिले भी
जो हमेशा सदा साथ देने को कहते रहे ।
मैं क्या कहता ,
बस मुस्कुरा देता और
छोड़ के जाने वालों को
इस बहाने से याद भी कर ही लेता ।
देखता हूँ जिंदगी कहाँ
ले के जायेगी ,
कितने रोते हुए चेहरों पे
मुस्कुराहटें ले के आएगी ।
साथी क्यूँ नही मिल रहा कोई
जो दूर तक साथ चले ,
कोई न मिले तो क्या नही चलूँगा मैं ,
नही नही ,
चलना ही तो नियति है ,
कोई नही मिला तो चला जाऊंगा अकेला ही
अपने इस सफर पे ,
अगर मिल गया तो खुशकिस्मत समझूंगा मैं
शायद कुछ जीवन संवारने के ,
अपने मकसद को पूरा कर ही लूँगा मैं
जिंदगी में आशा ,उम्मीद ,हिम्मत और विश्वास
के साथ आगे बढ़ता ही रहूँगा मैं .....
मैं ...
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