कितना अकेला हू मैं उसके बिन
कितना अधूरा ,
कितना ही अपूर्ण ,
साथ होता है जब तक कोई ,
क्यों नही समझ पाते उसके अस्तित्व को हम ,
जाने पे आया समझ मुझे ,
दुनिया क्या है , वो क्या है ,
क्यों ?
क्यों पहले सब समझ नही आ पाता?
क्यों पहले हम कुछ नही कर पाते ?
इस अधूरेपन को नही समझ पाते ?
जाने पे ही क्यों होता है ये एहसास ?
काश !!!
ये शब्द 'काश' कितने ही इच्छाओं को
पूर्ण करता है मनुष्य की ,
आज मैं भी इस शब्द का ही सहारा लिए हूँ ,
'काश' .......
No comments:
Post a Comment