आज मैं खामोश हूँ ,
अपने में खुद को ढूंढता
खुद को पहचानने की कोशिश करता हुआ
मैं खुद ही खुद में खो गया हूँ
मैं खामोश हो गया हूँ
आज लगा
मैं ,
'मैं' नहीं रहा
कितना बदला हूँ मैं
वक़्त ने बदला मुझे
या
मैंने खुद को 'मैं' ही नहीं रहने दिया
आज मैं असहाय सा हूँ
कहीं लगता है खो गया हूँ
मैं 'मैं' को पहचानने की कोशिश में हूँ
आज मैं खामोश हूँ ...
Wednesday, March 3, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मैं को खोकर फिर से मैं को पहचानने की कोशिश कई बार खामोश कर देती है ...!!
ReplyDeleteआज मैं खामोश हूँ ,
ReplyDeleteअपने में खुद को ढूंढता
खुद को पहचानने की कोशिश करता हुआ
मैं खुद ही खुद में खो गया हूँ
मैं खामोश हो गया हूँ
Behad sundar! Wah!
apne aapko kabhi mat khona...apne aap ko analyse karo...aur khud ko dhoondhne ki koshish karo..tabi ek manzil ka path pa sakte ho. bahut acchhi rachna.
ReplyDeletekhamoshiyo ko khamosh rehnedo,tum khudko pehchan sako to har khud k man ko khdse bat karnedo,
ReplyDeletehar lafz khamoshi ko chuta he har dhadkan har lafz samjhti he
ye khamoshiya hi to he jo hme humse jyada samjhti he
Wow, Jogi That was really a great one...Finding oneself in one is a real big job...The probs is, Unless u know abt urself, how can u know about others...but then how can u know abt urself if u don't know abt others...
ReplyDeleteDid u write this poem...???if yes...a big hug for that...really loved ur poem...keep writing...
jzt4me.blogspot.com
Thanks all !!
ReplyDelete