एक तारीख और बदल गई
एक सवेरा और आ गया,
सुबह से शाम हुई
और फ़िर शाम से सुबह हो गई
इंसां लगा रहता है जिंदगी की दौड़ धुप में
दो वक्त की रोटी की चाहत में
कोई हल चलाता है तो कोई
चन्द्र यान चलाता है ,
पर सोचता हूँ मैं आजकल
इस भाग दौड़ में ,सुबह शाम में
इंसां जीता कब है ??
क्या यही जीना है ??
निरुद्देश्य जीवन !!!
क्या कभी देखा अपने अन्दर झाँक के
कि मैं कौन हूँ ...
क्या उद्देश्य है इस जनम का,
शायद कभी सोचने का वक्त नही है ...
अरे याद आया !!!
घर राशन ले के जाना है और
हाँ, बिजली का बिल भी तो भरना है ॥
चलो अपने बारे में फ़िर कभी सोचेंगे...
सुबह और शाम की ख़बर भी ले लेंगे
जल्दी क्या है ॥
जी लेंगे ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Kayee baar insaan jeene kee taiyyaree karne me umr guzaar deta hai..aise log dekhe hain, khudke saath unke skee bhee zindagee kathin kar dete hain..haina
ReplyDeleteLekin' simte lamhen' pe aapkee tippanee samajh nahee ayee...please batayen,ki, is chinh ka kya matlab hua!