Monday, February 8, 2010

'प्रकृति और इंसां

प्रकृति
कितनी पावन
कितनी पवित्र
कितनी निश्छल ,
सिर्फ इंसां के लिए ही है हमेशा ,
कितना कुछ सिखाती है
जीवन के रहस्य बतलाती है ।

पेड़ों को देखो ,
छांव और फल इंसां के लिए
समंदर ,बादल
बारिश करवाते हैं
पहाड़
कल कल नदियाँ बहाते हैं ,

शहर के कोलाहल से दूर
एक झील का किनारा
जो सकून देता है
वो शहरों की भीड़ भरी
मायूस जिंदगी में कहाँ ?
पर इंसां क्यूँ सिर्फ
अपने लिए जीता है ,
'मैं' और 'मैं' में ही जीवन
गुजार देता है ...
क्यूँ ????

2 comments:

  1. पर इंसां क्यूँ सिर्फ
    अपने लिए जीता है ,
    'मैं' और 'मैं' में ही जीवन
    गुजार देता है ...
    क्यूँ ????
    आज की भाग दौड भरी जिन्दगी मे सही मे लोग प्रकृति को भूल ही नही गये उससे खिलवाड करने लगे हैंअपनी संवेदनाओं को ऐसे ही बनाये रखो बहुत बडिया लिखते हो। आशीर्वाद्

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