Thursday, March 21, 2013

एक परिंदा



वो दूर कहीं सूर्योदय हुआ ,
सूरज की लालिमा से धरती सजी है ,
भोर का तारा बना एक परिंदा ,
एक राह तके उसे ,
नई राह चुने वो ,
चलते जाने को सदा !!!
ये परिंदा फिर उड़ चला ,
एक नई उड़ान ,
पंखों में है भरोसा ,
चल पडा एक नई मंजिल की ओर,
फिर शाम ढले एक आशियाना चाहि  ए ,
पर सुबह होते ही ,
फिर नित नई आशा एक ,
एक नई मंजिल,
एक नया हौसला चाहिए ,
बस चलते रहने को जीवन डगर में ,
उड़ते जाने को ,

एक परिंदा फिर उड़ चला !!!
 

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