Monday, May 14, 2012


एक अधूरा ख्वाब सा ,
आँखों में पलता देखा मैंने,
कई दौर गुजरे ,
कई मंजिलें पाई...

नए साथी , नई    मंजिल
नए रस्ते पाए मैंने
पर अधूरा सा ख्वाब एक ,
आँखों में महसूस  किया  मैंने  आज  भी  ,

मैंने देखा है  ,
सपने  सच  होते  भी  ..
मैंने महसूस  की  है  ,
वो  जीत  की  ख़ुशी  ,
मैंने किये  हैं  अपने  ख्वाब भी  पूरे ...

कल  ही  गुफ्तगू  की  मैंने ,
इसी  ख्वाब  से  दोबारा  ,
पूछा  मैंने ,
चाहता  क्या  है  ,
बोला  , सच  होना  चाहता  हूँ  ...

मैं  मुस्कुराया  ,
हाथ  उसका  लिया  हाथ  में ,
बोला  मैं  ...
चल  आज  फिर  संग  संग  चलते  हैं  ...
बाकि  सपनों  की  तरह  इसे  भी  सच  करते  हैं  :)

चल  दिया  मैं  अपनी  सपनों  की  डगरिया ,
एक अधूरे  से  ख्वाब को  संग  ले  के
उसे भी सच  बनाने  ,

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