एक अधूरा ख्वाब सा ,
आँखों में पलता देखा मैंने,
कई दौर गुजरे ,
कई मंजिलें पाई...
नए साथी , नई मंजिल
नए रस्ते पाए मैंने
पर अधूरा सा ख्वाब एक ,
आँखों में महसूस किया मैंने आज भी ,
मैंने देखा है ,
सपने सच होते भी ..
मैंने महसूस की है ,
वो जीत की ख़ुशी ,
मैंने किये हैं अपने ख्वाब भी पूरे ...
कल ही गुफ्तगू की मैंने ,
इसी ख्वाब से दोबारा ,
पूछा मैंने ,
चाहता क्या है ,
बोला , सच होना चाहता हूँ ...
मैं मुस्कुराया ,
हाथ उसका लिया हाथ में ,
बोला मैं ...
चल आज फिर संग संग चलते हैं ...
बाकि सपनों की तरह इसे भी सच करते हैं :)
चल दिया मैं अपनी सपनों की डगरिया ,
एक अधूरे से ख्वाब को संग ले के
उसे भी सच बनाने ,
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