कई बार मन कितना उलझ जाता है ,
कोई राह नही , कोई साथी नही ...
क्यों फिर भी चलना होता है ...
मैं चला तो था सपने अनगिनत ले के
जाने क्या कैसे क्यों बदलता जा रहा है
मैं 'मैं' नही हूँ लगता है
कभी कभी मन हार जाता है ,
चाहता है कोई साथी ,
एक सहारा ,
जिसकी गोद में छिप जाने को मन करता है ,
आंसुओं से वो गोद भिगो देने का मन करता है ,
लगता है कभी कभी ,
हार जाता है मन ...
मेरा उत्साही और आशावादी मन !!!