विचारों की उधेड़बुन में
कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है मन ,
हम सोचते रहते हैं
क़ि हम कहाँ हैं ...
हम यहाँ हैं , हम वहां हैं
हम कहाँ कहाँ हैं ?
कभी उन्मुक्त पंछी जैसा
आसमान में उड़ता लगता है ,
कभी मदमस्त हाथी जैसा
जंगल में घूमता है ।
तो कभी भंवरे जैसा बन
फूलों पर मंडराता है ,
कभी प्रकृति जैसा पावन ,निश्छल बन
मदहोश कर देता है ये मन ।
कभी चाहूं मन की मानूं
कभी चाहूं मन मेरी माने
हमारे इस अंतर्द्वंद्व में
कभी हठी मन हारे
तो कभी मैं...
मन
चंचल ,पावन ,निश्छल,हठी
हर एक इंसां को
अद्वितीय निराला बनाता
ये मन ।
Thursday, April 15, 2010
Tuesday, April 6, 2010
i missed you !!!
i missed u when i was on top of hill...
snow all around me...
i look around ..to find smthing..
but i cudnt see anything except snow..
thats really sm place ..
where i wanna always go...
i reached there the day before...
but i regret too...
why i was alone there ??
i missed u when i was on top of hill...
snow all around me...
i look around ..to find smthing..
but i cudnt see anything except snow..
thats really sm place ..
where i wanna always go...
i reached there the day before...
but i regret too...
why i was alone there ??
i missed u when i was on top of hill...
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