Saturday, July 31, 2010

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मैं एक टूटे हुए तारे के लिए
आसमां को ढूंढता हूँ ...
मैं हर बुझते हुए चिराग में
रोशनी को ढूंढता हूँ ...
मैं तूफ़ान में तैरने वाले के लिए
साहिल को ढूंढता हूँ ...
इस वीरान इंसानों के जंगल में
मैं सबके लिए शांति को ढूंढता हूँ ...

मैं एक टूटे हुए तारे के लिए ...
आसमां को ढूंढता हूँ ..









Monday, July 19, 2010

खुद को पाना है !!!




शब्दों से पार जाना है ,
कभी तो खुद को पाना है ...

निर्झर झरने सा बहना है ,
कभी तो खुद को पाना है ...

बहता दरिया बन ,
सागर में मिल जाना है ,
कभी तो खुद को पाना है ...

Monday, July 12, 2010

एक जहाँ मेरा भी ...


एक अजीब सा खालीपन
एक असहाय सा होने का एहसास...
सब कुछ है ..
पर कुछ कमीं सी है ...
जिंदगी चलता हुआ एक कारवां ...
और हम सब मुसाफिर ...

किसी की कोई मंजिल
तो किसी का अपना एक जहां
मेरा जहाँ कहाँ है ...
सोचता हूँ कभी कभी ...
आज फिर अपने से ही ये प्रशन किया
पर प्रत्योत्तर में कुछ ना मिला ....

बस लगता है ...
कहीं और का ही मुसाफिर हूँ ...
एक जहाँ मेरा भी है कहीं ...
शायद इस संसार से दूर कहीं ...
यहाँ का हूँ नही शायद ,पर होता हूँ यहीं कहीं ही
कहीं और का हूँ , पर होता नही हूँ वहाँ पर ...

कभी कभी एक हूक सी उठती है मन में ....
कहीं चले जाने को उतावला होता है मन ,
जाने कहाँ,
शायद अपने ही उस संसार में ...
जहाँ मुझे लगे
ये जहाँ मेरा ही है ...
मैं यहीं का हूँ
और ये जहाँ भी मेरा ही है ...

Thursday, July 1, 2010

मुझे बढ़ना ही होगा ...


डगमग डगमग राहों पे ,
मैं चला ही जा रहा हूँ ...
कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पे
मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ ...

मैं चला था कल अकेला ,
कोई आया कोई चला गया ,
अंतर्द्वंद से कोई भरा रहा ,पर
मैं बढ़ता ही चला गया ...

पीछे मुड के देखा जब ,अब
कोई साथी ना दिख पाया
देखा साथ में कौन है ....
बस अपने को ही मैंने पाया ,
आगे बढ़ने की सोची तो
मंजिल एक नई चुनी
सोचा चलना चाहिए अब
सोचा बढ़ना चाहिए अब

हाँ ,
डगमग डगमग राहों पे ,
मुझे बढ़ना ही होगा ...
कुछ ऊँची कुछ नीची राहों पे
मुझे बढ़ना ही होगा ...


 
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